हम क्या थे - एक संक्षिप्त इतिहास

भारत के प्रेस महापंजीयक का कार्यालय का आरंभ भारत में प्रिंट मीडिया के उदय से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रवादी प्रेस ने जनमत को आकार देने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लोगों की ऊर्जा को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम में प्रिंट मीडिया की भूमिका और लोकतंत्र को मजबूत बना सकने में इसकी भागीदारी को समझते हुए, स्वतंत्र भारत सरकार ने 1956 में प्रथम प्रेस आयोग का गठन किया। इस आयोग को भारत में प्रेस की स्थिति की जाँच करने और दीर्घकालिक रूप से इसके सर्वांगीण विकास के लिए सिफारिशें करने का दायित्व सौंपा गया था।  

न्यायमूर्ति जी.एस. राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में इस आयोग के सदस्यों में डॉ. सी.पी. रामास्वामी अय्यर, आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. वी.के.आर.वी. राव, पी.एच. पटवर्धन, टी.एन. सिंह, जयपाल सिंह, जे. नटराजन, ए.आर. भट और चलपति राव जैसी कई प्रमुख हस्तियाँ और पत्रकार शामिल थे। आयोग ने समाचार पत्रों के एक पंजीयक को नियुक्त करने की सिफारिश की। इस सिफ़ारिश को स्वीकार करते हुए, सरकार ने प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 में संशोधन किया और संशोधित अधिनियम की धारा 19(क) के अंतर्गत भारत के समाचारपत्रों का पंजीयक (आरएनआई) की स्थापना की। यह अधिनियम 1 जुलाई, 1956 को लागू हुआ। यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक कार्यालय है।

1956 तक, भारत में नियतकालिक पत्रिकाओं के पंजीकरण के लिए कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं था। पंजीकरण अभिलेख संबंधित ज़िला मजिस्ट्रेट कार्यालयों द्वारा बनाए रखा जाता था। तथापि, आरएनआई की स्थापना से इसमें बदलाव आया, चूंकि आरएनआई का मुख्य कार्य देश में समाचारपत्रों और अन्य पत्रिकाओं के अभिलेखों का रखरखाव करना था।

आरएनआई कार्यालय, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में ही रहा है, छह साल पहले अपने वर्तमान पते पर स्थानांतरित हुआ है जिससे पूर्व इसका कार्यालय राष्ट्रीय राजधानी में अलग अलग स्थानों पर रहा है। 2018 से हमारा कार्यालय लोधी रोड, नई दिल्ली स्थित सूचना भवन में है। 1977 तक, शिमला में आरएनआई का एक क्षेत्रीय कार्यालय भी था, जहां समाचारपत्रों के पंजीकरण से संबंधित कुछ कार्य देखे जाते दे। 1990 के दशक में आठवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में आरएनआई के क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किए गए। बाद में, नौवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत भोपाल और गुवाहाटी में दो और कार्यालय स्थापित किए गए। तथापि, आरएनआई के सभी पाँचों क्षेत्रीय कार्यालयों को 2016 में एक समेकन प्रक्रिया के अधीन बंद कर दिया गया और उनके कार्यों को प्रेस महापंजीयक के समग्र पर्यवेक्षण और नियंत्रण में पत्र सूचना कार्यालय के संबंधित केंद्रों में क्षेत्रीय कार्यालयों को सौंप दिया गया।

68 वर्ष होने पर, आरएनआई का नाम बदल दिया गया। प्रेस एवं नियतकालिक पत्रिकाओं का पंजीकरण अधिनियम, 2023, जो 1 मार्च, 2024 को लागू हुआ, के अधिनियमन के साथ, प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण अधिनियम निरस्त हो गया। आरएनआई की पुनः स्थापना की गई। अब हमारा कार्यालय भारत के प्रेस महापंजीयक के रूप में जाना जाता है।